अंधेरों से विमुक्त हो।
हर कोशिश अंदर -बाहर
ज्ञान मे प्रज्ञान हो ।
एतेरेय उपनिषद में है,प्रज्ञा ही बह्य है ।
ज्ञानी , संत, ऋषि बोलते उपनिषद सत्य है ।
सब महसूस करते है अज्ञान बंधन ,
पतिंगों की तरह भोली-भाली भीड़ आम रोशनी को देख दौड़ पड़ते हैं।
क्या दिव्य है हैराने महसूस करते हैं ।
हम मनुष्य अंदर – बाहर
अनजाने उसी परमेश्वर के लिए तहे दिल तड़पते हैं ।
माया का छठा हो,अज्ञान अंधेरा।
छठे, घटेगा एक दिन सारा,
विमुक्त होगा जीव सारा ।
ये भारतीय दर्शन का अनुभव , सोच है हमारा ।
अंधेरों से विमुक्त हो जीवन सारा।_ डॉ. सीमा कुमारी, बिहार (
भागलपुर) दिनांक-29-1-022