अंधेरों में कटी है जिंदगी अब उजालों से क्या
अंधेरों में कटी है जिंदगी अब उजालों से क्या
ज़हर के घूंट पिए है अक्सर महफ़िल के प्यालों से क्या
© डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया
अंधेरों में कटी है जिंदगी अब उजालों से क्या
ज़हर के घूंट पिए है अक्सर महफ़िल के प्यालों से क्या
© डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया