“अंधियारा मिटा न सके”
“अंधियारा मिटा न सके”
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अंधियारा मिटा न सके,
एक ज्योति उर में जला न सके,
ध्येय है कि कुछ कर जाएं,
मुश्किलें, निज को तपा न सके।1
अब खिलते नहीं,
जज्बातों के फूल आंगन में,
कि ठानकर संकल्पों को,
पांव आगे बढ़ा न सके।2
अनेकों विघ्न राहों में,
चुभ रहे कांटे पांवों में,
हौसलों के उड़ान भर न सके,
परिस्थितियों में ढ़ल न सके।3
इसलिए अंधियारा मिटा न सके,
एक ज्योति उर में जला न सके।।
वर्षा (एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया