अंधा प्रेम
प्रेम प्यार का आलान ,
सब अज्ञान माया है ,
मत अकटना इसमें कोई ,
अन्यथा बेसुध हो जाओगे।
प्रेम जंजीर बँधी दासत्व है ,
इस में आलाने के पश्चात ,
ना निकलता कभी बाहर है ,
हयात की अनमोल राहों में ,
वह यहीं अव्यक्त हो जाता है।
आज के इस जगती में ,
स्वजन के अलावा कोई ,
ना करता यथार्थ प्रेम है ,
सब मुनाफे के समादर ही ,
करते हमसे आडंबर प्रेम।
प्रेम समुंद्र – सा प्रचंड है ,
जिसमें समाना वाले मनुज ,
गुमनाम आलयों में खो जाते हैं ,
राह की अन्वेषण में भटकते ,
शर – शय्या पर कहीं सो जाते हैं।
अपना सकल कुछ भूल वह ,
बस भागते अनक्ष प्रेम के पीछे ,
जब संप्राप्ति धूर्तता उन्हें है ,
तो रो – रो कुछ दिवा जी लेते ,
फिर अनक्ष प्रेम के झंझट में ,
स्वतः स्वंय का अस्तित्व मिटाते।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या