**अंधविश्वास**
** अंधविश्वास **
// दिनेश एल० “जैहिंद”
आशा और निराशा के बीच
ये दुनिया झूलती है |
विश्वास औ अविश्वास पर ही
ये दुनिया चलती है ||
पास की आशा रख हम तो
परीक्षा में बैठते हैं |
ना मालूम फेल कैसे हो जाते
फिर बैठ रोते रहते हैं ||
गैरों पर विश्वास न करना
गर धोका माना जाता |
खुद पर विश्वास भी रखना
कोई चतुराई नहीं होता ||
कर विश्वास हम नेताओं का
वोट जाकर दे आते हैं |
यही नेता फिर मंत्री बनके
हमको ठेंगा दिखाते हैं ||
ईश्वर भी तो एक कल्पना है
ईश्वर भी एक आस है |
विश्वास गर ईश्वर में रखते
तो यह भी अंधविश्वास है ||
हर रिवाज हर संस्कृति अब
आधुनिकता में जल रहे |
बेटी, स्त्री, बुजुर्ग रिश्ते हमारे
अंधविश्वास में ही पल रहे ||
सबने अब हमारे विश्वास को
अंध-विश्वास का नाम दिया |
हमारी अटूट आस्था को भी
पर-पाखंड कह बदनाम किया ||
जहाँ धर्म हमारा मर जाता
वहीं अधर्म फैल जाता है |
ये रिश्ता विश्वास न होकर
अंधविश्वास से भर जाता है ||
जिस सोच को पाले बैठे हो
जो विचार-धारा बह रही |
सोच ये तुम्हारी असंगत है
विनाश की बातें कह रही ||
गर इसी विचार से बढ़ते हो
सिर्फ नर-नारी रह जाओगे |
फिर नर अलग नारी अलग
अपना-अपना घर बनाओगे ||
मत कोसना “जैहिंद” को तब
हाथ धरके माथे पछताओगे ||
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दिनेश एल० “जैहिंद”
06. 07. 2018