अंधविश्वास – कहानी
सुधीर अपने परिवार के साथ शहर की एक सामान्य सी कोलोनी में रहते थे | परिवार में सुधीर के माता – पिता के अलावा पत्नी वैशाली और बच्चे प्रिया और प्रतीक थे | इस परिवार की ख़ास विशेषता यह है कि वे पुराने रुढ़िवादी विचारों के सच्चे पालक थे | फिर चाहे उन विचारों से उनके परिवार पर किसी भी तरह का नकारात्मक प्रभाव पड़े | बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ होता है , सुबह – सुबह कौवे का घर की छत पर आकर बैठना किसी मेहमान के आगमन का सूचक होता है , गलती से भी या जानबूझकर बिल्ली को मार देना या मर जाने पर सोने की बिल्ली दान करना जैसे कई रूढ़िवादी विचारों से पोषित यह परिवार कोशिश करता रहता है कि इनके साथ कभी कोई अनहोनी न हो | सुधीर के परिवार में बच्चों को छोड़कर सभी पुराने विचारों पर विश्वास करते हैं |
प्रिया अभी बी टेक फाइनल ईयर की छात्रा है दूसरी ओर प्रतीक अभी कक्षा बारहवीं का छात्र है | प्रिया और प्रतीक जब भी घर से परीक्षा के लिए जाते हैं तो उन्हें शक्कर – दही खाकर जाने को कहा जाता है | ताकि कार्य में सफलता हासिल हो | एक बार तो प्रतीक दही – शक्कर की व्यवस्था में देरी होने की वजह से परीक्षा कक्ष में देरी से पहुंचा था और उसे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था |
एक बार की बात है कि सुधीर को अपने विभाग की ओर से कार्यशाला में भाग लेने के लिए घर से 50 किलोमीटर दूर जाना था | घर से तो सुधीर सही समय पर निकला था किन्तु रास्ते में एक काली बिल्ली ने उसका रास्ता काट दिया | सुधीर वापस मुड़ा और दूसरे रास्ते की खोज करने लगा | जिससे उसे अपनी कार्यशाला में दो घंटे का विलम्ब हो गया और बॉस से झिड़की भी सुनने को मिली | और भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो इसके लिए नोटिस भी दिया गया |
इस परिवार में सबसे बड़ी घटना तो अब घटने वाली थी | सुधीर जी के घर में एक बिल्ली का बच्चा मेहमान बनकर आया | बच्चों की जिद थी कि एक बिल्ली का बच्चा पाला जाए | सुधीर की पत्नी वैशाली ने तो बहुत मना किया किन्तु बच्चों की जिद के आगे किसी की एक न चली | घर में एक सफ़ेद बिल्ली का बच्चा घर की रौनक बढ़ाने लगा | उसकी शरारतों ने सबका मन मोह लिया और घर को चूहों से भी निजात मिल गयी |
एक दिन की बात है | सुधीर की पत्नी रसोई घर में शेल्फ पर से कोई डिब्बा उतार रही थी पास में ही बिल्ली का बच्चा भी खेल रहा था | अचानक वो डिब्बा वैशाली के हाथ से छूटकर नीचे खेल रही बिल्ली के बच्चे के सिर पर आ गिरा | सुधीर की पत्नी वैशाली घबरा गयी कि यदि यह बिल्ली का बच्चा मर गया तो सोने की बिल्ली का बच्चा दान करना होगा | यह सोचते ही वह बेहोश हो गयी | आनन – फानन में बिल्ली के बच्चे को जानवरों के अस्पताल ले जाया गया | वहां दो दिन के उपचार के बाद बिल्ली का बच्चा ठीक हो गया किन्तु उसे घर नहीं लाया गया और न ही सुधीर ने अपनी पत्नी को बताया | उससे कहा गया कि अब सोने की बिल्ली दान करने की तैयारी कर लो | वैशाली यह सुन बेहोश होते – होते बची | सभी ने उसे संभाला और सच बता दिया | साथ ही बीती घटनाओं का जिक्र भी किया कि किस तरह रूढ़िवादी विचारों के कारण उन्हें शर्मिंदगी झेलनी पड़ी |
उस दिन की घटना के बाद से सुधीर के परिवार ने अंधविश्वास को त्याग दिया और सादा जीवन जीने का प्रण किया | जीवन में बातों पर उतना ही विश्वास करो जहाँ तक अहं विश्वास की सीमा न लांघे | यदि सीमा लांघी तो फिर विश्वास से अंधविश्वास में बदलते देर नहीं लगती |