अंधभक्तों की तथाकथा भाग-1
बात 2014 की है. मौसम की गर्मी के साथ ही लोकसभा चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर थी. वक्त शाम का था. बड़ी संख्या में लोग शहर के एक वाचाल चायवाले की चाय कैंटीन पर चाय पी रहे थे. साथ ही चुनावी चकल्लस में निमग्न थे. वहां चाय पी रहे लोग प्राय: पढ़े-लिखे वर्ग से ही थे. ठीक उसी वक्त मेरा भी वहां पहुंचना होता है. वहां वाचाल चायवाला लोगों को अधकचरा-अधपका चुनावी ज्ञान पेले जा रहा था. उसने लोगों से कहा-‘देखना तोऽऽ, मोदी है आधा कर देंगा!!!’ (यहां लोग ‘देगा’ का उच्चारण ‘देंगा’ करते हैं) चायवाले का यह आखिरी वाक्य मुझे पिंच कर गया. मैंने उससे पूछा-^‘महाराज क्या आधा कर देंगा?’’ उसने जवाब दिया-^‘महंगाई और क्या?’ यह सुनकर मुझे हंसी आ गई. मेरी हंसी सुनकर वह ऐसे घूरा कि लगा कि कहीं मुझे सशरीर ही न निगल जाए. मैंने वहां चुप रहना ही उचित समझा क्योंकि वहां अधिकांश अंधभक्त ही मौजूद थे.
चुनाव खत्म हुए. भाजपा विजयी हुई, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. इसके करीब पंद्रह दिन बाद उसी चायवाले ने चाय का दाम एक रुपए बढ़ा दिये. तख्ती टांग दी-‘चाय 6 रुपए’ मैंने पूछा-‘महाराज पांच का आधा क्या छह होता है?’ उसने अचकचाते हुए कहा-‘क्या?!’ मैं समझ गया कि उसने मेरी बात नहीं समझी. मैंने उसे उसकी पुरानी बात याद दिलाते हुए कहा-‘महाराज! तुम तो कहते थे कि देखना तो मोदी है, आधा कर देंगा और तुमने तो उल्टे एक रुपए बढ़ा दिए. हम तो इस उम्मीद में थे कि चाय अब ढाई रुपए में मिलेगी.’ चाय वाला जवाब देता भी क्या, हें हें हें करके रह गया. आज भी उस चायवाले का अंधगुणगान चालू है.