*अंधता कब दूर होगी*
चाहता हूँ मैं पूंछना ,यह अंधता कब दूर होगी।
छलती रही इस तरह तो,कब यह मजबूर होगी।।
थमा गया कौन उनको, भेद क्यों खुलता नहीं है
शाप किस दोष का है ?कांख वो कब दूर होगी।।
अमन को तो फैलने दो ,नमन से है प्यार तुमको
शांत लहरों को जगाना ,क्या ठीक ये दस्तूर होगी।।
अनागत को क्यों सोचना ?ग़र इंसानियत शेष है
याकि वो ही भला है ,जब आपसी जी हुजूर होगी।।
बक़्त जो कह रहा है ,टाले फिर टलता नहीं है
छाप रखा है उसे फिर ,त्याग दो ना गुरुर होगी ।।
काल का मण्डप सजा है ,घड़ियां मुखर हो रहीं हैं
न्याय कर दे’ साहब’ तू ,बात तो फिर जरूर होगी।।