अंधकार जो छंट गया
अंधेरे है मगर
इतना खौफनाक मंजर
भयानक आवाज़,
दृश्यमान कुछ है नहीं,
मगर प्राण कंप उठे है,
चेहरे पर पसीना, आंखें सूर्ख लाल,
आंखों की पुतली जैसे भौंह के पीछे छुप गई,
सन्नाटा टूटने लगा,
तेज हवाएं,
आसमां में बादल,
उनके टकराने पर तड़क बिजली,
तड़ित न हुई,
शुक्रगुज़ार उसका,
पक्षी वृक्षों के आश्रय,
टूटने लगी टहनी
वृक्ष गिरे
साथ कुचले गये,
मूसलाधार वर्षा,
उडने वाले उड न सके
गति अपनी बढ़ा न सके,
पंख गीले
ओलावृष्टि जैसी तेज बूंदें.
सरपट दौड़ लगाता पानी,
छीनते देख,
पैरों तले की जमीन,
खिसक गई.
अंधकार हैं मगर
वजूद किसी का सतत नहीं,
ये स्वप्न सा संसार,
सपनों जैसा ही रह गया,
उठा तो सब ठीक था,
पेडों के लहराते पत्र,
पक्षियों का कलरव,
काम पर लगे
घर के सभी सदस्य,
रोजमर्राह के काम में जुटी
अर्धांगिनी.
लगता है,
आज फिर,
अंधेरे में गायब,
वे सब दृश्य,
जो मन अशांत है,
उठ जाओ,
आपके पैरों तले जमीन है,