अंदाज़ शायराना !
जैसा सम्मान हम खुद को देते है !
ठीक वैसा ही बाहर प्रतीत होता है !
जस् हमें खुद से प्रेम है !
तस् बाहर पर से नफरत ???
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कुछ परंपरा-वादी है !
कुछ का है..लीला में विश्वास,
गर यही हाल रहा !
खूब फूले-फलेंगे !
अवसर-वादी !
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सुना है :-
प्रेम कभी मरता नहीं,
न मीरा मरी न कबीर,
पाखंड है ओढ़नी,
उसको हटा कर देख !