अंदाज मस्ताना
मिले हो तुम जब से अंदाज मस्ताना हो गया
मिले हो तुम जब से ये दिल परवाना हो गया
महफिलों के दौर यूँ ही चलते रहते हैं रात भर
तुम्हारी मोहब्बत में दिल ही मयखाना हो गया
सुनते थे किस्से हम भी लोगों से मोहब्बत के
तुम्हारी मोहब्बत में अपना अफ़साना हो गया
जवाँ मोहब्बत हो जाए तो फ़िर खुदा खैर करे
तुम्हारी मोहब्बत में ये दुश्मन जमाना हो गया
“विनोद” होने दो अब अंजाम चाहे जो भी हो
तुम्हारी मोहब्बत में मौसम भी सुहाना हो गया
स्वरचित
( विनोद चौहान )