बनवास
बनवास
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अक्सर मन जब बिन तेरे
उदास हो जाया करता है
यादें तेरी आकर उसको
सहारा दे जाया करती हैं
यादों के उस पसमंजर में
जब याद मैं तुमको करता हूं
आंखों में बस छवि तुम्हारी
बरबस बस जाया करती है
दिल की बातें दिल ही में थीं
जब पहली बार मिले थे हम
तुमने जब देखा था मुझको
नयन हमारे टकराए थे
श्रावण का महीना था प्यारा
और कॉलेज का प्रांगण सुंदर सा
प्रकृति की अनुपम छटा से
मौसम भी आल्हादित था
बारिश का था सुहाना मौसम
हम तुम ही पहुंचे थे क्लास में
मौसम की तरुणाई ने हमारे
नैनों को मिलवाया था
जाने वो कैसा आकर्षण था
जाने वो कैसा बंधन था
एक डोर थी प्यार भरी प्रिये
जिसने हम दोनों को बांधा था
वही डोर है आज भी जिसमें
हम तुम दोनों ही बंधे हैं
उसी प्रीत की मजबूत डोर से
दोनों ही के सुख दुख भी जुड़े हैं
साथ तुम्हारे ये जीवन मेरा
सुखद अनुभूति प्यारी है
बिन तुम्हारे जीवन की कल्पना
एक बनवास भारी है
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (मध्य प्रदेश)