अंदाज ए इश्क
अंदाज़ ए इश्क
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नज़रें जरा सी क्या इनायत की इश्क ने,
हुस्न के चेहरे पे रंग ए गुलाल आ गया।
इज़हार ए मुहब्बत क्या किया इश्क ने,
देखते देखते हुस्न पर नूर आ गया।
इकरार ए मुहब्बत क्या किया उन्होंने,
जिंदगी में मौसम ए बहार आ गया।
गुलों ने खिलना जब से सीखा चमन में,
गुलशन में खुशबू का दौर आ गया
हाथों ने जब छुआ उनके हाथों को ऐसे
दिल के तारों को झनझनाना आ गया।
दो कदम चलके वो करीब क्या आए,
जमाने वालों को बातें बनाना आ गया।
थाम कर हाथ इश्क ने जो सजदा किया,
हुस्न वालों को इबादत का हुनर आ गया
संग साथ निभाने के वादे क्या किए हमने,
लोगों में वादे निभाने का चलन आ गया।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट ( मध्य प्रदेश)