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2 Aug 2021 · 1 min read

— अंदाज अच्छा नही ऐसा —

जरा संभल के चलिए “साहब”
यह शहर हादसों का है
कहीं लग न जाए ठोकर
जरा हमारी भी तो सुनिये !!

मुख से निकली बात
पराई हो जाया करती है
किसी की समझ में आ जाए
तो वो अपनी सी लगती है !!

हर वक्त न रहा करो घोड़े पर सवार
कहीं हमारी भी सुन लिया करो
जा रहे हो मदमस्त हाथी की तरह
अपने पागल कदम उठाये हुए !!

जो नही सुनता किसी की
वो इक दिन ठोकर खा जाता है
इतना गरूर न कर रे प्राणी
यहाँ सब मिटटी में मिल जाता है !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 465 Views
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