अंत का नही है अंत
अनंत है अंत
अंत का नहीँ है अंत
चलती रहती है
सृष्टि
बस बदल रहती है
दृष्टि
अपने , अपनों को
चले जाते हैं छोड़ कर
यादें रहती हैं
जब तलक है जिन्दगी
जीता है इन्सान
जीवन और
है अंत
ईश्वर के हाथ
रहे जब तलक
खुश रहे
साथ साथ
जीवन का अंत
यादों की
होती हैं शुरूआत
यादें अनंत
कभी न खत्म
होने वाला अंत
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल