अंतिम सुन्दरता
बहुत हुआ नादानी,
आओ देखें दाना पानी।
राग द्वेष छोड़ कर ,
हिया पटल खोल।
गोल देखा है कपोल,
रेशमी लटों का मोल।
देखा न मन की घटा,
दे छाया अनमोल।
ऊपर की काया पाया,
मंदिर नहीं समाया।
बजा घंटा सुना नहीं,
ध्वनि हिया खोल।
आया मद तन चूमा,
जग सब हर घूमा।
पर नहीं किया कभी,
शाश्वत सत्य तोल।
कभी रूप रंग संग,
कभी देखा तन अंग।
भूल गया प्यार नेक,
आपन चक्षु खोल।
करुणा में मन नहीं,
विष दिल भरी रही।
कैसे होगे नीक तुम,
वाणी सुनर बोल।
आय खूब किया तूने,
जाते वक्त सब सुने।
नाम छोड़ जाना तुझे,
छोड़ि के हीरे गोल।
अब से मानव बन,
उम्र बचा कुछ कम।
ये अंतिम सुंदरता,
भू गाये बजा ढोल।