— अंतिम यात्रा —
जिंदगी भी कैसी इक पहेली है
यह क्या किसी की सहेली है
सांस की डोर पर नाचती हुई
सब से बड़ी यह पहेली है !!
दुनिआ में आयी बस अकेली है
जायेगी भी छोड़ के अकेली है
पल भर के साथ के साथ चल कर
पकड़ लेती फिर राह अकेली है !!
सगे सम्बन्धी सब खड़े सामने इस के
बंद आँखे अब न कोई सहेली है
पल भर में उठ जायेगी यहाँ से
किस ने कहा कि यह मेरी सहेली है ??
जो होगा सब से प्यारा इस का
वो दूर कहीं चला गया होगा
तेरी रीत न समझ पाया कोई बनवारी
जिंदगी सच में अनबूझी ही पहेली है !!
सांस टूटी तो बस साथ छूटा
कौन किसी का क्या लगता है
मन की मन में रह गयी सब के
यह बड़ी गंभीर ही तो पहेली है !!
न जाने क्यूँ बनते हैं यहाँ साथी
बस जमीन आसमान से लगते हैं
दिल को तसल्ली देते हैं सब यूं ही
यहाँ हर आत्मा बस अकेली है, अकेली है !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ