अंतिम यात्रा (सम्पूर्ण)
जन्नत सा वो शहर था
नरक-सी वो आग थी
अंधकार से लिपटा बदन था
और वो सुंदर खाट थी
अजीब-सा सपना था
दुश्मनो की टोली थी,हमारे बंदुको मे गोली थी
आखिरी गोली पर जंग खत्म थी
सीने मे कुछ हरकत हुई थी
हाथ मे तस्वीरें,तस्वीरो मे एक लौं थी
एक लौं ओर चारो और बौछार थी
मुक्त सा हो गया था,बस लौ की ही प्रकाश थी
प्रकाश जब न था देखी वहाँ मेरी ही एक छाव थी
वो सपना अजीब नही हकिकत था
जंग तब खत्म थी जब सीने मे गोली दफन थी
तस्वीरो मे मित्रो की होली परीवार की रंगोली थी
घर की रौनक न देख पाया जो अंतिम यात्रा थी
अंधकार से नही, कफन से लिपटी लाश थी
चढ़ा था तिरंगा और पायो की वो खाट थी
चार कंधो मे चौथा मेरा वंश था
जख्मी वर्दी पहने था कल जो उसकी अंतिम यात्रा थी
वंदे मातरम् की गुंज मे मिली जो सलामी थी
मंजर था लोगो का,रोती जो आँख थी
शायद जन्नत का वो शहर था
और वो मशाल नरक की आग थी
——— —– शक्ति