अंतिम चेतावनी
चिंतित थी सभा लंकापति की, कोई ना अनजान था
वानर सेना पहुंची लंका, इसका सबको संज्ञान था
बात छिड़ी थी रणनीति की, तभी सहसा परिषद डोला
उड़ आया एक वानर भीतर, नीचे उतरा और बोला
‘राम भक्त अंगद हूँ मै, साथ संदेसा लाया हूँ
रघुपति को लौटा दे सीता, बात समझाने आया हूँ’
लंकापति कुछ ना बोला, रहा कुर्सी पर ऐंठा
पूँछ से अपनी आसान बनाके, अंगद उसपे बैठा
लंकेश वही अकड़ में बैठा, बाकी सभा थी मौन
अहंकारी अंत में पूछा, ‘वानर तू है कौन?’
अंगद बोला, ‘जिस वानर ने मुंडी तेरी,थी बाज़ू में अपने दबाली
उस बलशाली का पुत्र हूँ मैं, जिसको कहते थे सब बाली!’
रावण फिर अकड़ में बोला, ‘अंगद संग तुम उसके रहते हो
जिसने मारे तुम्हरे पिताजी, उसको प्रभु तुम कहते हो!’
लाज शर्म कुछ है बाकी, तो थामो मेरा हाथ!
मिलके पराजित करेंगे सबको, जुड़ जाओ मेरे साथ
उस सन्यासी मे क्या दम है, जो वो मुझको मारेगा!
रणभूमि में देख ये लेना, वो मेरे हाथो से हारेगा’
उठके खड़ा हुआ फिर अंगद, आँखें थी उसकी शोला
उतरा नीचे गुस्से में, और पाँव जमाके बोला,
‘जीत पायेगा राम प्रभु से, यही तो तेरा धोखा है
शस्त्र डालदे, क्षमा माँगले, अब भी तुझपे मौका है!
जो कुपित हुए श्रीराम, तो तू उनसे ना बच पायेगा
और खर दूषण की भाँती तू भी, भूमि पे कुचला जाएगा
क्या हराएगा रघुपति को, तेरा राक्षस का ये मेला
हिम्मत है तो ये पाँव हिलादो, यहाँ खड़ा हूँ अकेला!’
एक-एक करके आते सभापति, अपना ज़ोर दिखलाते
पर अंगद था पाषाण के जैसा, उसके पग को हिला ना पाते
देख सभा की खिल्ली उड़ते, लंकापति गरमाया
और खड़ा हुआ सिंघासन से, वो आगे बढ़के आया
पर इससे पहले छू पाता, वह अंगद का पग
अंगद ने आप ही पाँव उठाया, बोला ‘रहने दे तू ठग!
‘दाबने है तुझको तोह, राघव के पग दाब
अंतिम अवसर है ये सुधर जा, वरना झेल रघुवंशी ताब!’
इस अंतिम चेतावनी को दे, अंगद वहाँ से चल पड़ा
और कांपते तीनो लोक थे जिससे, वह रावण था मूक खड़ा