गांधी का अवतरण नहीं होता
गांधी का अवतरण नहीं होता
शहर के मध्य स्थित गांधी चौक पर स्थापित गांधी जी की आदमकद प्रतिमा के सामने हाथ जोड़े खड़े आत्माराम व्यथित स्वर में बोले, “अब अति हो गई है बापू। और नहीं देखी जा रही है देश की दुर्दशा। देश का सर्वनाश हो गया है। सब कुछ देखते हुए भी हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। आजकल लोगों ने आपको सिर्फ नोटों में ही सिमटा कर रख दिया है। अब तो आ जाओ बापू। एक बार फिर से अवतार धरो। देश पुकार रहा है आपको। भारत माता आव्हान कर रही है।”
“आत्मा राम।”
आत्माराम को लगा मानो किसी ने उसे आवाज दी हो। अगल-बगल, आगे-पीछे देखा, जब कोई भी नहीं दिखा, ऊपर देखा, तो लगा कि गांधी जी की प्रतिमा मुस्कुरा रही है।
“बापू आप ?” उसे लगा मानो गांधी जी उससे मुस्कुराते हुए कह रहे हों, “आत्माराम, तुम अपनी अंतरात्मा में झांककर देखो। तुम्हें पता चल जाएगा कि गांधी का अवतार न पहले कभी हुआ था, न ही अब आगे कभी होगा। गांधी बनना पड़ता है। दुनिया आज जिसे गांधी, बापू और महात्मा के रूप में जानती और मानती है, वह भी कभी तुम्हारी ही तरह एक साधारण इन्सान था। आज इस देश को गांधी की नहीं, उसके विचारों की जरुरत हैं। उसे पुस्तकों से बाहर निकालकर अपने रोजमर्रा जीवन में उतारने की जरुरत है। यदि ऐसा हो सका, तो देश का हर नागरिक गांधी होगा…”
अब आत्माराम की अंतरात्मा जाग गई है। उसने निश्चय कर लिया है कि वह भी गांधी के बताए रास्ते पर चल कर समाज के हित में जो भी बन सकेगा, करेगा।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़