अंतस में जहर
जुबान शहद अंतस में जहर
दोमुहा आदमी कठिन डगर
जा रहा कहाँ थोड़ी देर ठहर
क्यों करता है तूँ अगर मगर
व्यवधान तो जीवन में ऐसे आएंगे जाएंगे
जो लड़ न पाए इनसे वो हरदम पछताएंगें
दिन डूब गया हो रात चली
अंतस में बातों की थी खलबली
चार दिन की ही तो जिंदगानी है
फिर सबकी होगी चला चली
फिर भी आग लगाने से वे बाज न आएंगे
व्यवधान तो जीवन में ऐसे आएंगे जाएंगे
अच्छे लोग तो अब अपवाद रहे
बस यही लोग निर्विवाद रहे
अपने जैसा बनाने के खातिर
कुछ लोग इनको भी साध रहे
उनको लगता है ये भी मेरे जैसे हो जाएंगे
व्यवधान तो जीवन में ऐसे आएंगे जाएंगे
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
गोरखपुर उ. प्र.