अंतर्वेदना
बहुत रोई थी उस दिन मेरी संवेदना
जब मेरी माँ ने
मेरी होने वाली बहन को
उसके जन्म लेने से पहले ही
अपने गर्भाश्य की छोटी सी
दुनिया से निकाल
चिर् स्थाई नींद में सुला दिया था ।
मैं सपने संजोये बैठी थी
उस सचमुच की भावी गुड़िया के साथ
गुड़िया- गुड्डा खेलने के ।
मैंने अपने सभी खिलौनों में से
कुछ प्रिय खिलौने उसके लिए
अलग निकाल कर रख दिए थे ,
जैसे वो ढम ढम करता हुआ बंदर,
हाथ ऊपर उठाकर नाचता हुआ भालू ,
छोट-छोटे बर्तनों वाला किचन सैट…।
किंतु ये क्या !
मुझे असीम प्यार देने वाली
मेरी माँ ने ही
पारंपरिक अंधविश्वासयुक्त महत्वाकांक्षा के आगे
मेरी संवेदनाओं और
पूरे होने जा रहे
भावी सपनों को
यूँ ही टूटने और बिखरने दिया ।
डॉ रीता
आया नगर,नई दिल्ली- 47