अंतर्मन
जाना किधर था
न जाने किधर कहां बढ़ रहा हूं ,
दूसरों की किस्मत लिखनी थी
खुद की लकीरें पढ़ रहा हूं ।
गुस्सा सबसे हूं
पर , खुद से लड़ रहा हूं ।
हासिल तो नहीं किया कुछ भी ,
फिर क्या खोने से डर रहा हूं ।
इन धड़कनों पर मत जाओ ,
जिंदा हूं मगर अंदर से मर रहा हूं ।
~ विमल