अंतर्मन दिपिका
सुबह का सूरज गया चांद को मनाने
दिन में संभाल लुंगा इस दुनिया को
पर रात में संभाल लेना तुम
देखो दुनिया चल रही है गलत राह पर
संभालना है हमें इसे
क्योंकि यह है हमारी भविष्य राह
अंधेरे में कहीं भटक ना जाए वे
तुम इतना प्रकाश फैलाना,
देखो घटता बढ़ता में रोज़ हूं
पर तब भी पूर्ण कोशिश करता
किरण अपना बढ़ाने की
कहीं भटक ना जाए मुसिफिर बीच राह में
अंधेरे में उजाला करता हूं मैं
पर क्या नहीं लगता है तुम्हें
बाहर से ज्यादा आंतरिक अंधेरा है यहां
कैसे मिटाएं हम उसे??
अपने तेज से प्रज्जवलित करके
प्रतम मिटाएं बाहरी अंधकार को
और जब बुनियाद हिलेगा
छत अपने आप धह जाएगा
आखिर कोशिश तो करें हम
चलो चांद करने अपना काम रे
दिखाने अपना प्रभाव रे