***अंतर्मन की आवाज ***
।। श्री परमात्मने नमः ।।
***”अंतर्मन की आवाज “***
रामनरेश शर्मा जी बैंक में अधिकारी के पद पर कार्यरत रहे हैं वे शहर में रहते हैं उनका पैतृक गांव शिवपुर है जो सड़क से 3 किलोमीटर अंदर है वहाँ के ग्रामीण इलाकों में सुविधायें उपलब्ध नहीं है गांव वाले अल्प सुविधाओं में ही गुजर बसर कर लेते हैं ।
यहाँ से गाँव जाने के लिए केवल एक ही बस आने जाने के लिए उपलब्ध है यह बस सुबह गाँव की ओर जाती है और शाम को उधर से गाँव के तरफ जाने वाले यात्रियों को खचाखच भरते हुए लौटती है।
रामनरेश शर्मा जी सर्विस के दौरान अवकाश के दिन अपने पैतृक गांव शिवपुर बस से ही गये वहाँ दिन में अपने परिवार जनों के साथ आसपास मौजूद क्षेत्रों में घूमकर घर की ओर जाने के लिए रवाना हुए अब शाम भी हो रही थी शहर लौटने के लिए तीन किलोमीटर पैदल चलकर सड़क मार्ग तक पहुंचना था और बस पकड़नी थी गांव से तीन किलोमीटर पैदल चलकर सड़क मार्ग पर बस का इंतजार करने लगे थोड़ी देर बाद उन्हें दूर से बस आती हुई नजर आई और पास आने पर उन्होंने हाथ हिलाकर बस को रोकने का इशारा किया लेकिन बस वाले ने बस को नही रोका और उनके
सामने से ही बस तेज रफ्तार से आगे बढ़ाकर निकाल ली वो भौचक्के से रह गए और मन में कहने लगे कैसा ड्राइवर है .. गाड़ी रोकी ही नही फिर कुछ देर रुककर सोचने लगा शायद आगे चलकर गाड़ी रोकेगा शायद मुझे देख तो लिया होगा कोई बात नहीं फिर “अंतर्मन से आवाज आई” कहने लगा – ” जा रे ..! ! बस वाला मुझे बस में नही बैठाया ये तूने अच्छा नही किया आज तेरी बस बिगड़ जाये या किसी कारण से रुक जाये”
अब रामनरेश शर्मा जी असमंजस में पड़ गए उन्हें सुबह ऑफिस पहुंचना जरूरी था और घर जाने के लिए पहला विकल्प – तीन किलोमीटर पैदल चलकर पुनः शिवपुर जाये या दूसरा विकल्प -आगे बढ़ने के लिए दस किलोमीटर दूर पैदल चलकर कोई साधन उपलब्ध हो सकता था वे दस किलोमीटर पैदल ही वहाँ से चल पड़े और अंतर्मन में सोचते जा रहे थे कि वैसे तो बस यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी लेकिन बस वाला अकेला मुझे भी बैठा लेता तो क्या बिगड़ जाता जैसे तैसे आगे बढ़ते हुए हनुमान चालीसा पढ़ते राम जी का नाम लेते हुए अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच ही गये वहाँ पहुँचते ही एक जीप आयी उन्होंने फिर हाथ से इशारा करते हुए गाड़ी रोकी और उसमें बैठ गये जीप अब शहर की ओर तेजी से चली जा रही थी तभी उन्होंने रास्ते में देखा वही बस जो उन्हें पीछे छोड़ कर आ गई थी बीच रास्ते में किनारे खड़ी हुई थी उस बस का टायर पंचर हो गया था और यात्री सवारियां भी हैरान परेशान से खड़े हुए थे ये दृश्य देखकर रामनरेश शर्मा जी ने राहत की सांस ली और कहा -*”जो होता है अच्छे के लिए ही होता है*” चलो थोड़ी सी परेशानी उठाने के बाद अब मै आराम से घर जा रहा हूँ ……! ! !
ऐसा कहा जाता है कि “माँ सरस्वती जी कंठ में विराजमान रहती है और हमारे अंर्तमन से निकली हुई आवाज प्रायः उन तक पहुंच जाती है जहाँ तक हम पहुंचाना चाहते हैं
स्वरचित मौलिक रचना ??
*** शशिकला व्यास ***
#* भोपाल मध्यप्रदेश #*