अंतर्द्वंद..
इश्क़ ओ मोहब्बत के फ़साने
गढ़ने जब बैठता हूँ
दिल के एक कोने से
मुझे सुनाई देती है,
कुपोषण के शिकार
शिशुओं का क्रंदन
कानों में चुभती हैं
अनगिनत माँओं की चीत्कार
गुरबत और बेरोजगार
युवाओं की पुकार
तपती धूप में खेतों में
छुट्टा पशुओं को
दौड़ाते किसानों की आवाज़
अपनी झूठी कामयाबियों पर
ख़ुद की पीठ थपथपाते
नेताओं के दम्भी बोल,
टीवी पर मदारी की
तरह बंदरों को नचाते
तथाकथित पत्रकारों के
दुखी अवाम का मुँह चिढ़ाते बोल
बन्द कर लेता हूँ अपने कानों को
छुपा लेता हूँ अपने चेहरे को शर्म से
और फ़िर….
वही क्रम,
वही इश्क़, मोहब्बत के किस्से
झूठे वायदों के फ़साने और एक
लंबा अंतहीन मौन.!!!!
हिमांशु Kulshrestha