अंतर्द्वंद
किसी का
किसी पर
कैसा अधिकार
मैं तू से या
तू मैं से
जीवन्त तो नहीं
कैसे मुगालते
पल रहे
क्यूं हम
खुद को ही
छल रहे
निकल नहीं
पाते जीवन भर
फिर भी
खुद से ही
लड़ रहे।
किसी का
किसी पर
कैसा अधिकार
मैं तू से या
तू मैं से
जीवन्त तो नहीं
कैसे मुगालते
पल रहे
क्यूं हम
खुद को ही
छल रहे
निकल नहीं
पाते जीवन भर
फिर भी
खुद से ही
लड़ रहे।