अंजुली
स्नेह सिंचित अंजुली
आकांक्षायें है सिमटी हुई,
निष्काम भाव से चल पड़ा
जहाँ भाग्य ने सोचा वहीं।
साक्षी अतिरेक कर्म का
संघर्षमय जीवन मेरा,
सतत सोचता हूँ भाग्य ने
मेरे लिये सोचा है क्या?
बेशक बहुत कुछ मिला नही
पर जो मिला वह कम नही
भगवान लेना चाहता क्यो?
तू कड़ी परीक्षा इतनी मेरी।
तपा रहे शायद हो मुझको
खरा सोना बनाने को,
कहि राख न बन जाऊं मैं
साथ उपले का निभाने को।
भविष्य से अंजान आज
आजीवन मैं भटकता फिरा,
ठोकर किसी के पैर का ही
शायद बना दे मुझको हीरा।
पूरा देवलोक वरदानित
सुन्दर पावन वसुन्धरा में
दूर क्षितिज तक फैली हुई
है आच्छादित सत्य गगन में।
ब्रह्मा विराजे ले माँ स्वरूप
पिता विष्णु सम पालनहार
शिव गुरु की सदमहिमा से
होता जीव भवसागर पार।
हो जीवन चट्टान सामान
सख्त और मजबूत विधान
या नीर सम तरल सरल
तय करना है तुम्हे निधान
संवेदनहीनता चट्टान का गुण
संवेदनशील वारि होती है
छिपा हमारे सब अवगुण को
अपने प्रवाह में लेती है
अनवरत धार वारि की देखो
चट्टानों को भी तोड़ देती है
हो कितनी कठोर जड़े पर
उन्हें उखाड़ ही दम लेती है।
सृष्टि सनातन यह अनुपम है
अनुपम रचना इस संसार की
जब तक इसे समझते सब
आता समय यहाँ से जाने की।
है छणभंगुर जीवन निर्मेष
फलक बना विस्तृत विराट
तुलना में बुद्धि बहुत छुद्र है
बिना शर्त हो जाये तैयार।