अंजुली भर नेह
चाहत थी अंजुली भर नेह तुम्हारा
अच्छा लगता सस्नेह पाकर प्यारा।
चाह नहीं अमर्यादित प्रेम तुम्हारा,
अनुराग अपनत्व अधिकार तुम्हारा।
स्नेहागार नारी मन अनन्त विस्तारा
आत्मसमर्पण यथार्थ सर्व प्रकारा।
नैतिक पथचल अनैतिक राह दुत्कारा,
निश्चल,निर्विकार ऊर्जस्वित उर हमारा।
नैतिक अवलम्ब अभिव्यक्ति की धारा,
ममत्व मन अनुपम एहसास का क्यारा।
संयमित नैसर्गिक मिठास दीदार तुम्हारा,
मोहताज नहीं बंधन का,बस था मुस्कराना।
ना नफरत की नागफनी,ना हो फ़साना
इत्ती सी बात पर बेवजह बात ना उगले जमाना
लफ़्ज़ों के असर से न रूसवाई न मयखाना
समझ संग विश्वास, दुआ और सबको हंसाना।
– सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान