अंजाम ए जिंदगी
जाने क्यों और कैसे खुदा ,
मुझे यह कैसे शहर में ले आया।
जहां आते ही हमारी खुशियों ,
का जहान उजड़ गया ।
दिल का चैन खत्म,
और सुकून सब गायब हो गया।
हमारी ख्वाइशों के पौधे का ,
तिनका तिनका बिखर गया ।
सपनों के घरौंदे टूट गए ,
आशाओं का आइना धुंधला हो गया ।
एक आजाद पंछी के पर काट दिए गए ,
बस ! अब कुछ न पूछो !
इस बेरहम और बेवफा तकदीर के कारण ,
सारी जिंदगी का सत्यानाश हो गया ।
अपने देश के हमने सारे शहर देखे ,
कुछ में निवास भी किया ।मगर ,
कोई तो इतना मनहूस न हुआ ।
है तो बाबा फरीद के नाम पर ,
मगर इससे क्या फर्क पड़ता है !
आंखों का अंधा ही तो हमारे लिए ,
नाम नयन सुख हुआ ।
अब और क्या कहें इसके बारे में,
यूं समझ लो यहां आकर हमने तो ,
दोस्तों जीतेजी नर्क को देख लिया ।
अपराधी लोग तो मरकर नर्क भुगतते है ,
हम जैसे बेकसूर और मासूम इंसा ने ,
जाने किस अनजानी खता की वजह से ,
जीतेजी नर्क भुगत लिया ।
और अब भी भुगत रहे हैं।
बस जिंदगी को यूं ही गुजरते हुए ,
चाक दामन सी रहे है। ।
यूं अंजाम ए दास्तान हमारी जिंदगी का हुआ ।