अंग
ओ कृष्णा रँग लो मुझे,अब तो अपने रंग।
सारे जग को भूल कर,लगी तुम्हारे अंग।। १
रंग लगा दे रे मुझे, और लगा लो अंग।
फगुआ मद की है चढ़ी, नाचों गाओ संग।। २
कृष्णा ऐसा कौन सा,घोला तूने रंग।
चढ़ा अंग में इस तरह,देख जगत है दंग।। ३
चढ़ा प्रेम का रंग जब, भूले सारे रंग।
रग रग में आनंद है, झूमे सारे अंग।। ४
रंग लगा कर यूँ गया, पिला दिया है भंग।
है मेरे बस में नहीं, मेरा कोई अंग।। ५
पोर-पोर कल्पित हुआ,काँप रहा है अंग।
चितवन व्याकुल हो गया,मलय सुगंधित रंग।। ६
मन पलाश कुसुमित हुआ, है अकुलाया अंग।
हिय उत्कंठित वेदना, भींगा वसन विहंग।। ७
विरहन से पूछो नहीं, कोई प्रेम प्रसंग।
मिलती शीतलता कहाँ,जले चाँद से अंग।। ८
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली