अंग्रेजी का जब से ये दौर चला
जब से अंॻेजी का दौर चला,कहने सुनने वालो का होता भला,न कह सकने वालों का हो गया बुरा,परदेश से आया और यहीं का हो चला,
भारत कि माटी में यह पला बढा,
हर गली कूचे में घुमा व खेला,
पर हमें ही अपनी जुबाँ से कर दुर चला,
आज हर राज्य में पढी लिखी,व बोली जाती है यह,
थी राज भाषा जो हम सबकी अपनी,
उसे ही बेगानी बना गयी है यह,
हिन्दी से करते हैं कुछ यों परहेज,
थोपी जा रही है हम पर,हमें स्वीकार नही,
अंग्रेजी कि है यह निराली कला,
अंग्रेजी का जब से ये दौर चला।
बढप्पन का मानक है आज अंॻेजी,
रोजगार की कुंजी भी है आज अंग्रेजी,
समाज मे सम्मान पाने का पैमाना है अंग्रेजी,
जो न पढ पाये हैं इसको,उनकी समस्या है अंग्रेजी,
पढ और गुन गये है जो इसको,,
उनकी भाग्यविधाता बन बैठी है अग्रेजी,
अंग्रेजी बन गई हैअब अभेद्य किला,
अंग्रेजी का जब से दौर चला ।
समारोहों में,सानो शौकत दिलाती है अंग्रेजी,
हिन्दी दिवस पर भी बोली जाती है अंग्रेजी,
जो होते हैं आमंत्रित कहने को हिन्दी,
उनकी जुबाँ पर बरबस अा जाती है अंग्रेजी,
अभिब्यक्ति कि हो चली है आसान कला,
अंग्रेजी का जब से यह दौर चला,
हैं भ्रम पाले मुझ जैसे अनेकों इंन्सान,
मानते हैं जो हिन्दी को अपनी जुबान,
कर गये जो हिन्दी के लिये अपनी जाँ कुर्बान,
तब जाकर रख पाये वह इसका मान,
प्रचारित करते रहे हिन्दी का ज्ञान,
वह दिनकर,जयशंकर और मैथली की थी माला,
सर्वेश्वर,शाही,महादेवी और निराला,
इन्होने हिन्दी को अपनी जान से ज्यादा है पाला,
उम्मीद पर इसकी कि कभी तो छटेगा ,अन्धेरा,
और आयेगा उजाला।