अंगराज कर्ण
अछि गरजन डोलैत सिंहासन—
‘हो भले ओ त्रिदेव,माधव—? हा!’
राधेय पधारो देस हमारे ।
दानवीर ! गौरवगाथा ! कोन ?
वसुंधरा हुनिक सिंगार करैए
दिव्यरत्न आ नेहक विपरीत
सूतपुत्र कहितो कियो आनल
परशुरामक अछि शिष्य
जिनगीक अघात शापित
वसुंधरा हुनिक सिंगार करैए
मंगलचार नक्षत्र ह्रदयमे
मनक चंचल आओर चित्रवन
देखल छलिया छल की
वसुंधरा हुनिक सिंगार करैए
दिव्यरत्न आरो नेह अरिपन
तोँ मित्रवर आ तोहि राधेय
छोट सन ओऽ दिव्य सिंघासन
वसुंधरा हुनिक सिंगार करैए
श्रीहर्ष आचार्य