अंगदान
अंगदान
“सॉरी, हम पेशेंट को नहीं बचा पाएँगे। बस, कुछ ही समय बचा है। वह ब्रेनडेड हो चुका है।”
ऐसा कहकर मानो डॉक्टर ने सुनने वालों के कान में उबलता हुआ लावा उड़ेल दिया हो। मरीज के परिजन रोने-बिलखने लगे। किसी तरह खुद को सामान्य करने की कोशिश करते हुए मरीज के पिताजी ने पूछा, “डॉक्टर साहब, ब्रेनडेड वाले पेशेंट के बॉडी आर्गन तो डोनेट किए जा सकते हैं न ?”
“जी हाँ। कर सकते हैं। पर उसके लिए आपको एक फॉर्म भरकर सहमति देनी होगी।” डॉक्टर ने जवाब दिया।
“ठीक है सर। लाइए फॉर्म दीजिए। मैं अपनी सहमति देता हूँ। मेरा बेटा तो अब रहा नहीं, उसे जलाकर खाक करने से बेहतर है कि कम से कम उसके कुछ बॉडी आर्गन तो रहें। इस बहाने कुछ जरुरतमंदों की सहायता भी हो जाएगी और हमें तसल्ली रहेगी कि हमारे बेटे का कुछ अंश तो है हमारे आसपास। सर, हमारे बेटे की हार्ट, लीवर, किडनियाँ, आँखें, स्कीन और जो भी आर्गन डोनेट हो सकते हैं, कर दीजिए।” कलेजे पर पत्थर रखकर पिताजी ने कहा।
“काश ! अन्य लोग भी आपकी तरह सोच रखते, तो लाखों लोगों की जिंदगी में खुशियाँ बिखेर जाती।” डॉक्टर ने श्रद्धावनत होकर कहा और अपने सहयोगी कर्मचारी को अंगदान की औपचारिकता पूरी करने के लिए निर्देशित किया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़