अंगड़ाई
अंगड़ाई
१)
क्यों हुई गुलाबी सुरमई पुर्वा
यह बात समझ न आई।
नील गगन पर भी काली
घनघोर घटाएं छाई।
पक्षियों ने मधुर सुर छेड़े
और तरु वल्लरी नाचें।
लगता है सुंदर प्रकृति ने
फिर ली है आज अंगड़ाई।
२)
जिस तन लागे वो मन जाने
है हरजाई ये जुदाई।
देखो रात अंधेरी ने भी
ली अंगड़ाई पर अंगड़ाई।
क्यों उड़कर है आस का पक्षी
दूर क्षितिज में जाकर डूब गया।
क्या है विरह वेदना किसी प्रियतमा
को प्रियतम की आज सताई।
नीलम शर्मा