अँधेरी बस्तियों को रोशनी का सिलसिला देना
अँधेरी बस्तियों को रोशनी का सिलसिला देना
उजालों की तमन्ना में हमारा दिल जला देना
सजाये ख़्वाब है हमने लहू का रंग भर भर कर
हमें आया न नींदों को ख़ुदा का वास्ता देना
जिगर के ज़ख़्म जलते हैं लबों से आह उठती है
नहीं आसान है यूँ अश्क आँखों से गिरा देना
वफ़ादारी निभाई है वफ़ा के नाम पर हर दिन
तुम्हें दिल दे दिया हमने तुम्हें अब और क्या देना
तराशे जा रहे हैं रोज़ कुछ पत्थर न जाने क्यों
यहाँ है शौक़ लोगों का ख़ुदा का घर मिटा देना
अभी से दे रहा दस्तक सियासत का नया मौसम
बग़ावत हम नहीं करते उसूलों से बता देना
राकेश दुबे “गुलशन”
22/07/2016
बरेली