” ———–———————-अँखियाँ पल पल हरषे ” !!
ऐक झलक पाने को तरसे ,छिपे चाँद के जैसे !
गन्ध संदली कैसे भूलें , मधुवन को हम तरसे !!
हंसी दामिनी जैसी दमके , अलकें घटा सी छाइ !
छटा बिखेरो इंद्रधनुष सी , अँखियाँ पल पल हरषे !!
हंसी खनकती , छन छन करती , बाहर हम घायल हैं !
इसलिए तो यहां वहां है , तेरे मेरे चर्चे !!
मदमाती सी गन्ध उड़ी है , सम्मोहन जागा है !
रात दिवस भी यहां थमे है , पल पल लगे ठहरते !!
तेरा जलवा मिले देखने , उम्मीदें कायम हैं !
गलियां गलियां भटक रहे हैं , तेरे आज शहर के !!
नाज , अदाऐं पाली तुमने , गले लगी खुशहाली !
रुख़सारों की रंगत देखी , बढ़ गए भाव पहर के !!
बृज व्यास