♥️♥️दौर ए उल्फत ♥️♥️
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दौर ए उल्फत में चल रहा सिलसिला बेमानी का।
एन बरसात में जोर क्यों कम होने लगा पानी का।।
आइना तुझे देखता है तू आईने में देखे खुद को।
कमतर कहें किसको अजीब माजरा था हैरानी का।।
नकली नकाब था जो उतरा की शेखी भी उतार गई।
गया ना बल रस्सी का अभी तेग है चढ़ा तुर्यानी का।।
पूछता फिरता है बाबाओं से किस्मत का लिखा अपनी।
बाजू उतार टांग दिए यही सबब था तेरी परेशानी का।।
खुदा की रहमत से हुए हासिल तरक्की ऐ महल औ मकां ।
बुलंद इकबाल रहा तो था असर मां की निगहबानी का।
बुझ गया है चेहरा देखते ही उनका दरवाजे पर आशिक।
मोहब्बत दिल में नहीं उनके तो क्या है मजा मेहमानी का।।
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उमेश मेहरा (आशिक)
गाडरवारा ( एम पी)
9479611151