बनना है तो, किसी के ज़िन्दगी का “हिस्सा” बनिए, “क़िस्सा” नही
चिंपू गधे की समझदारी - कहानी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दोहा छंद विधान ( दोहा छंद में )
सारे निशां मिटा देते हैं।
जबकि ख़ाली हाथ जाना है सभी को एक दिन,
नया है रंग, है नव वर्ष, जीना चाहता हूं।
*भाग्य विधाता देश के, शिक्षक तुम्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
कहीं से गुलशन तो कहीं से रौशनी आई
रिश्ता कभी खत्म नहीं होता
शयनकक्ष श्री हरि चले, कौन सँभाले भार ?।
नच ले,नच ले,नच ले, आजा तू भी नच ले