प्रेम की पेंगें बढ़ाती लड़की / मुसाफ़िर बैठा
एडमिन क हाथ मे हमर सांस क डोरि अटकल अछि ...फेर सेंसर .."पद्
जब किसी व्यक्ति और महिला के अंदर वासना का भूकम्प आता है तो उ
23/192. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
समरथ को नही दोष गोसाई
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
ये उम्र के निशाँ नहीं दर्द की लकीरें हैं
*जो लूॅं हर सॉंस उसका स्वर, अयोध्या धाम बन जाए (मुक्तक)*
हर रास्ता मुकम्मल हो जरूरी है क्या
काव्य-अनुभव और काव्य-अनुभूति
घर में यदि हम शेर बन के रहते हैं तो बीबी दुर्गा बनकर रहेगी औ
कदम बढ़ाकर मुड़ना भी आसान कहां था।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
मौत क़ुदरत ही तो नहीं देती
कह दिया आपने साथ रहना हमें।
रामायण के राम का , पूर्ण हुआ बनवास ।
कोई तो रोशनी का संदेशा दे,
पीर- तराजू के पलड़े में, जीवन रखना होता है ।
चलो मिलते हैं पहाड़ों में,एक खूबसूरत शाम से
शूद्र व्यवस्था, वैदिक धर्म की
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
"आंधी की तरह आना, तूफां की तरह जाना।