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4 Feb 2017 · 1 min read

ग़ज़ल

यह रिश्ता बड़ा नाजुक होता है,
जिस में इंसान पता नहीं
क्या क्या खोता है !!

प्यार कि भाषा में कभी कभी
मीठा जेहर घुला हुआ होता है,

जिन पर विश्वाश करो प्यार में
उन से ही मिला होता धोखा है ,

इन रिश्तो कि डोर को टूटने में
जयादा वकत ख़त्म नहीं होता है,

पल भर में टूट जाते हैं, जिन को
बांधने में इंसान सारी उम्र बोता है,

सोचता नहीं उस पल के बारे में
जो साथ साथ बिताया होता है,

चला देता है, गोली और खंजर उस पर
जिस के साथ चलने को वो कसम लेता है,

क्यों हैवानियत को अपने ऊपर ढोता है,
इंसान कि भाषा में क्यों नहीं वो इंसान होता है,

बांध कर उस बंधन को क्यों वो सात फेरे लेता है,
जो अगले ही पल उस कि भावनाओं से खेलता है,

अनजाने में भी किसी रिश्ते का न अत्याचार करो,
सोच , समझ, कर ही रिश्ते का गठजोड़ करो,

ग़लतफहमीओं से घर संसार का सत्य नाश होता है,
बाद पछताता है इंसान जब रिश्ता टूटने का एहसास होता है,

खामियन हर इंसान में होती है,किसी में कम किसी में ज्यादा होती हैं
काश ! अपनी खामिओं का भी तो अपने अंदर विश्लेषण एक बार करो,

कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ

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