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10 Feb 2022 · 1 min read

होस्टल

ऊंगली पकड़कर जिसे चलना सिखाया था कल
आज छोड़ आए उसे आत्मनिर्भर बनने के लिए होस्टल
दरिया जैसी कलकल बेटी रहे नही कभी निर्बल
सुना सुना लग रहा है घर-आँगन की हलचल
दिल की अरमान माँ-पापा की मान
आशा है बढ़ायेगी अपने कुल की गुमान
समय की नज़ाकत से भर दिये है उसे हौसलों की उड़ान
ताकि जिन्दगी भर मिलता रहे सम्मान
माना कि डॉक्टरों की पढाई है नही आसान
लेकिन, ठीक से पढ़ लेगी तो बन जायेगी पहचान
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि घटने न दे कभी अभिमान।।

प्रस्तुति:
पवन ठाकुर “बमबम”
गूरुग्राम

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 139 Views
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