हे प्रभू !
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कैसे -कैसे कलयुगी हैं इस धरा पर हे प्रभू !
किस तरह ख़ुद को रखूँ इनसे बचाकर हे प्रभू !
सच न देखें ,सच न बोलें,सच श्रवण से भी बचें
क्या यही हैं गाँधी जी के तीन बन्दर हे प्रभू !
सोच में जिनके घुसा है प्राण घातक वायरस
क्या कोई उनके लिए भी है दवाघर हे प्रभू !
अग्निवाणों से करूँ मैं मेघवर्षा किस तरह
कर रहे अन्याय मुझ पर तुम सरासर हे प्रभू !
— शिवकुमार बिलगरामी