हुस्न-ए-अदा
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दर्दे-उल्फ़त ही तो है अस्ल ये मज़ा
नाकाम ही तो होना है हुस्न-ए-अदा
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हुस्ने-अदा हो या अदाए हुस्न हो
हर शय में आप ही बस अच्छे लगे
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बिकते हैं जो उनके ही तो ख़रीददार होंगे
जो बिक रहे हैं भला क्या ईमानदार होंगे
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छेड़ो मत यारो, ज़िक्र-ए-उल्फ़त
क्या हासिल होगा, ज़ख़्म कुरेद के
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