Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 May 2022 · 4 min read

हवा-बतास

‘ये ईया! कुछ समय खातिर गाजियाबाद चलऽ ना!’
‘ना बाबू! हमके शहर के पानी सूट ना करी… रहे दऽ।’
मोहन के ईया उनके मना क दिहली। मोहन के परिवार में उनके माई, बाबूजी, भाई आ बहिन गाँव में ईया के साथे रहत रहे लो। मोहन गाजियाबाद के एगो कारखाना में काम करत रहलन। उनके मेहरारु आ दू गो लइका उनही के साथे गाजियाबाद में रहे लो। मोहन कुछ दिन खातिर घरे आइल रहलन।
‘ये ईया! एक बेर चलऽ त सही, हमरा पूरा विश्वास बा कि ओइजा के सुख-सुविधा तहार मन मोहि ली।’ मोहन हाँथ जोरि के कहलन।
‘बाबू! पूरा जिनिगी येही माटी में सिरा गइल अब ये बुढ़ौती में का दुनिया देखावल चाहत बाड़ऽ, छोड़ऽ जाये दऽ!’
‘बस एक बेर चलऽ ना! हमरा आशा बा कि तहरा शहर में बहुते अच्छा लागी!’
मोहन के परिवार एगो बहुते सभ्य आ संस्कारित परिवार रहे। सब केहू इहे सोचे कि पूरनिया के सेवा हमहीं करीं। मोहन अपनो हिस्सा के सेवा क लिहल चाहत रहलन। येही से जिद प उतारू हो गइलन। नाती के जिद देखि के ईया के एक ना चलल। ऊ गाजियाबाद जाये खातिर तइयार हो गइली। मजबूरी में घरवो के लोग जाये के इजाजत दे दिहल।
सबेरे मोहन अपनी कार से शहर खातिर चल दिहलन। कई घंटा के सफर के बाद गाड़ी जब गाजियाबाद पहुँचल त ईया के माथा जवन लमहर यात्रा के कारन पहिलहीं से घुमावत रहे, शहर के अजीब दुर्गंध से अउर तेज घुमावे लागल। उनके उल्टी प उल्टी होखे लागल। मोहन कुल्ला करऽवलन आ कोल्डड्रिंक ले के अइलन। ईआ कहली ‘हम ई ना पीअबि, ई बहुते नटई जरावेला। चलऽ अब उल्टी ना होई।’ ईया तनी सा पानी पियली फेर गाड़ी आगे बढ़ि चलल।
‘बाबू येहिजा येतना बसात कवन ची बा हो?’
‘नाला के पानी हऽ। अपनी गाँवे के नहर जेतना चाकर बा, ओकरो से चाकर येइजा के नाला बा। जेइमें शहर के तमाम खराब फल, सब्जी, अनाज, खाना, कपड़ा-लत्ता, पलास्टिक इहाँ तक ले की मल-मूत्र हरदम बहत आ सरत रहेला। उहे कुल बसा रहल बा।’
ईया के फेर ओकाई आवे लागल।
‘ये बाबू! कवनो बाग-बगइचा होखे त रोकऽ, तनी सुस्ता लिहल जा फेर आगे चलल जाई।’
ईया गाड़ी से बाहर देखली, दूर दूर ले गाड़ियन के भीड़ रहे, पैदल, मोटरसाइकिल भा साइकिल से लोग येने ओने ये तरे भागत रहे जइसे कुछु भिला गइल होखे भा छूट गइल होखे। ऊ गाँव के लोगन में येतना बेचैनी कबो ना देखले रहली। उनके आसमान छुअत इमारत, चिमनी, धुँआ आ शोरगुल के अलावा कवनो छायादार पेड़ ना लउकल। मोहन कहलें- ‘चलऽ अब ढेर लामें नइखे, क्वाटरे पर आराम कइल जाई। येने पेड़-खूंट बहुत कम बाड़ीसन, आ जवन बचलो बा उहो कारखाना भा घर बनावे खातिर लगातार कटात जात बा। बुझात बा कि कुछ बरीस में इँहवा साँसो लिहल मुश्किल हो जाई।’
‘कुछ बरीस के का कहत बाड़ऽ, हमरा त अबे से साँस फूलल आ आँखि भाम्हाइल शुरू हो गइल बा।’
मोहन मनेमन सोचे लगलें ‘हम ईया के येइजा लेआ के गलती त ना क दिहनी! कहीं ई बेमार मत हो जास! अभिन येतने देर में ई हाल बा, एक-दू महीना में का होई!’ ईहे कुल सोचत ऊ अपना क्वाटर पर पहुँच गइलन।
‘ये नेहा! देखऽ केकरा के ले आइल बानीं! मोहन के मेहरारु नेहा क्वाटर से बाहर निकलली त ईया के देखी के अघा गइली। ऊ उनकर पाँव छुवली आ अंदर ले के जाते रहली तले उनके दुनु लइका स्कूल से आ गइलन सँ आ ‘दादी अइली… दादी अइली…’ कहत उनके पाँजा में पकड़ी लिहले सन। पनातिन के देखि के ईया के मन गदगद हो गइल। ऊ दुनु बचवन के खूब दुलार आ आशीष दिहली।
सभे अंदर आइल, ईया के तबियत गड़बड़ा गइल रहे येहीसे ऊ कुछ खइली ना। रातभर उनके नींद ना आइल कहाँ गाँव के शांत आ पवित्र वातावरन आ कहाँ इ शहर के पेंक-पांक, जहर भरल हवा। साँस लिहला आ आँख में जलन के दिक्कत बढ़ते गइल। ईया रातभर ना सुतली त दुसरो केहू के नींद ना आइल। सबेरे नहा धो के ऊ तनी सा खाना खइली बाकिर साँस फूलले के परेशानी बढ़ते जात रहे। मोहन डिउटी पर चल गइल रहलन, ईया के दम घुटे लागल, कुछ देर में उनके तबियत अउर खराब हो गइल। अचानक ऊ बेहोश हो के गिर गइली। नेहा ई सब देखि के घबरा गइली ऊ मोहन लगे फोन क के सब हाल बतवली आ ईया के लेके हास्पिटल पहुँच गइली जहाँ उनके आक्सीजन दिआये लागल। मोहन हास्पिटल पहुँचलन त उनके ईया अभीन बेहोशे रहली। ऊ बैचैन हो गइलन। घरहू फोन करे के हिम्मत ना होखे, काहे कि ऊ खुदही जिद क के उनके येइजा ले आइल रहलन। पुछला पर डाक्टर बतवलन कि अत्यंत प्रदूषण के कारन ई दिक्कत भइल बा। कुछ समय के बाद इनके होश आ जाई।
दू-तीन घंटा के बाद ईया के होश आ गइल। होश आवते ऊ मोहन से कहली ‘हमके गाँवे… पहुँचा दऽ! ये शहर में हम… ना जी पाइबि। गाँव के हवा-बतास खातिर एके दिन में ई आत्मा तरस गइल बा। तुहूँ ये शहर…के बजाय कवनो अइसन शहर में…नोकरी खोजि ल जहाँ…शुद्ध हवा पानी मिले!’ नेहा उनकी बाति के समर्थन कइली आ कहली कि ‘लइकन के आज से गरमी के छुट्टी हो गइल बा हमनियो के लेहले चलीं। बहुत दिन हो गइल गाँव के अमरित नियर हवा खइले। हमनी के पहुँचा के आइबि त तनी कम्पनी से बात क के कवनो साफ सुथरा शहर में आपन ट्रांसफर करवा लेब। लइको जब शुद्ध वातावरन में पढ़िहे सन त ओकनी के दिमाग आ देहि बढ़िया से विकसित होई।’ मोहन हामीं भरले।
ओइदिने सांझी के सभे गाँव के ओर चल दिहल। शहर पार करते ईया के साँस के गति सामान्य होखे लागल। ईया के तबियत सुधरत देख मोहन के जान में जान आइल।

कहानी- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 21/05/2022

Language: Bhojpuri
9 Likes · 7 Comments · 1037 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दुनिया की गाथा
दुनिया की गाथा
Anamika Tiwari 'annpurna '
लोकशैली में तेवरी
लोकशैली में तेवरी
कवि रमेशराज
बचपन
बचपन
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
कह रहे हैं मैं बुरी हूँ लेकिन
कह रहे हैं मैं बुरी हूँ लेकिन
Shweta Soni
"वक्त इतना जल्दी ढल जाता है"
Ajit Kumar "Karn"
#दोहा-
#दोहा-
*प्रणय प्रभात*
2489.पूर्णिका
2489.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
When you think it's worst
When you think it's worst
Ankita Patel
अद्वितीय संवाद
अद्वितीय संवाद
Monika Verma
*** रेत समंदर के....!!! ***
*** रेत समंदर के....!!! ***
VEDANTA PATEL
// स्वर सम्राट मुकेश जन्म शती वर्ष //
// स्वर सम्राट मुकेश जन्म शती वर्ष //
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
बदनाम ये आवारा जबीं हमसे हुई है
बदनाम ये आवारा जबीं हमसे हुई है
Sarfaraz Ahmed Aasee
मुद्दतों बाद मिलते पैर लड़खड़ाए थे,
मुद्दतों बाद मिलते पैर लड़खड़ाए थे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
श्री श्याम भजन 【लैला को भूल जाएंगे】
श्री श्याम भजन 【लैला को भूल जाएंगे】
Khaimsingh Saini
शब्द से शब्द टकराए तो बन जाए कोई बात ,
शब्द से शब्द टकराए तो बन जाए कोई बात ,
ज्योति
ज़िंदगी की
ज़िंदगी की
Dr fauzia Naseem shad
आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
महान क्रांतिवीरों को नमन
महान क्रांतिवीरों को नमन
जगदीश शर्मा सहज
अब मत खोलना मेरी ज़िन्दगी
अब मत खोलना मेरी ज़िन्दगी
शेखर सिंह
इजोत
इजोत
श्रीहर्ष आचार्य
क्या हुआ जो तूफ़ानों ने कश्ती को तोड़ा है
क्या हुआ जो तूफ़ानों ने कश्ती को तोड़ा है
Anil Mishra Prahari
नवरात्रि के इस पावन मौके पर, मां दुर्गा के आगमन का खुशियों स
नवरात्रि के इस पावन मौके पर, मां दुर्गा के आगमन का खुशियों स
Sahil Ahmad
I'm not proud
I'm not proud
VINOD CHAUHAN
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
*बिना तुम्हारे घर के भीतर, अब केवल सन्नाटा है ((गीत)*
*बिना तुम्हारे घर के भीतर, अब केवल सन्नाटा है ((गीत)*
Ravi Prakash
बिखरे सपने
बिखरे सपने
Kanchan Khanna
औरत
औरत
नूरफातिमा खातून नूरी
किरणों का कोई रंग नहीं होता
किरणों का कोई रंग नहीं होता
Atul "Krishn"
बेटा राजदुलारा होता है?
बेटा राजदुलारा होता है?
Rekha khichi
मनवा मन की कब सुने,
मनवा मन की कब सुने,
sushil sarna
Loading...