हर लम्हा दास्ताँ नहीं होता ।
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हर लम्हा दास्ताँ नहीं होता ।
हर अश्क बेज़ुबाँ नहीं होता ।
गुलो, बच के रहना ज़माने में –
हर शख़्स, पासबाँ नहीं होता।
सुशील सरना
हर लम्हा दास्ताँ नहीं होता ।
हर अश्क बेज़ुबाँ नहीं होता ।
गुलो, बच के रहना ज़माने में –
हर शख़्स, पासबाँ नहीं होता।
सुशील सरना