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10 Apr 2021 · 1 min read

नमन माँ गंग !पावन

नमन मां गंग ! पावन, शिव जटा से अवतरण करती।
नमन मंदाकिनी! अविरल ,सदा हित वैतरण करती।
यहां भागीरथी मां श्राप धोती सगर पूतों का।
सरित देवी !बहो निर्मल धरा का उद्धरण करती

सदानीरा, सदा निर्झर ,हिमालय से, निकलती हो।
यथा निर्मल, सदा पावन, मुखी गौ से ,पिघलती हो।
जलधि से भी ,अधिक पावन ,हमारी गंग माता है।
पहाड़ों से उतरकर माँ धरा पर तुम फिसलती हो।

कभी संगम कभी पटना कभी काशी निवासी हो।
कहीं उद्गम हिमालय से कहीं सागर प्रवासी हो।
तुम्हारी संस्कृति के गान सारा विश्व गाता है।
नमन गंगा ! सुपावन देव काशी की नवासी हो।

डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय सीतापुर
9450022526
मौलिक रचना

Language: Hindi
2 Comments · 302 Views
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Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम

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