मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
प्रजातन्त्र आडंबर से नहीं चलता है !
कहाँ चल दिये तुम, अकेला छोड़कर
■ स्वाद के छह रसों में एक रस "कड़वा" भी है। जिसे सहज स्वीकारा
पैमाना सत्य का होता है यारों
बढ़े चलो तुम हिम्मत करके, मत देना तुम पथ को छोड़ l
Shyamsingh Lodhi Rajput (Tejpuriya)
हम जियें या मरें तुम्हें क्या फर्क है
सर्द हवाएं
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
सुनें सभी सनातनी
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali