*सड़क पर मेला (व्यंग्य)*

*सड़क पर मेला (व्यंग्य)*
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सड़क बेचारी क्या करे ! बनी तो इसलिए थी कि उस पर लोग चलें। कुछ लोग पैदल चलें, कुछ साइकिल और ई-रिक्शा से चलें । कुछ लोग स्कूटर – बाइक और कार से चलें ।सड़क चलने के लिए बनी है । रुकने के लिए नहीं बनी है ।
जहां लोग रुके ,सड़क परेशान हो जाती है । क्यों भाई ! आगे बढ़ते क्यों नहीं ? सड़क लोगों को टोकती है “भाई साहब !दस मिनट से खड़े हुए हैं ,थोड़ा आगे बढ़िए। ” लेकिन लोग हैं कि नहीं सुनते ।अपना स्कूटर और बाइक सड़क के किनारे सुबह से शाम तक खड़ा कर देते हैं । सड़क का दम घुट जाता है । उसका आकार आधा रह जाता है । अरे भाई ! स्कूटर और बाइक पर आए हो तो आगे बढ़ते रहो । सड़क तो बराबर कह रही है वीर तुम बढ़े चलो ,धीर तुम बढ़े चलो । अब महाबली बाइक आगे न बढ़े ,तो उसको कौन आगे बढ़ा सकता है ?
सड़क पर बाइकों का मौज – मस्ती के अंदाज में आराम से खड़े हो जाना जहां प्रतिदिन का कार्य देखा जा सकता है ,वहीं त्योहार आते ही सड़क को हार्ट अटैक होने लगता है । कारण यह है कि सड़क पर प्रशासन मेले लगवा देता है । आओ भाई ! सड़क मेला लगने के लिए है । मेला लगाओ। प्रशासन का कार्य सरल हो गया। मेला भी लग गया और विशेष प्रयत्न भी नहीं करना पड़ा ।
बस केवल मेला क्षेत्र वाली सड़क के दोनों सिरों पर बैरियर लगाना होता है। कार तथा ई-रिक्शा को रोक दिया जाता है। क्यों भाई ! सड़क पर कार और ई-रिक्शा क्यों नहीं निकाल कर ले जा सकते ? पुलिसवाला कहता है :”देखते नहीं आगे मेला लगा हुआ है ।”
सड़क बेचारी जिसे अभी-अभी हार्ट अटैक हो कर चुका है ,किसी तरह दबे स्वर में सिर ऊँचा करके पूछती है “मुझे सांस लेने से क्यों रोका जा रहा है ? बैरियर लगाने से मेरा दम घुट रहा है ? मैं तो चलने फिरने के लिए बनी हूं । तुमने मुझ पर ई-रिक्शा और कार को आने से रोक दिया अर्थात मुझे अपाहिज बना दिया ?”
पुलिस वाले डंडा फटकारते हैं और कहते हैं ” क्यों बे सड़क ! तुझे अपने स्वार्थ की पड़ी है ? यह देख कितना बड़ा मेला लगा है । अगर हफ्ता – दस दिन तू हार्टअटैक में बिस्तर पर पड़ी रहेगी तो तेरा क्या घट जाएगा ? मेले को देख ,आनंद ले । चलना-फिरना सड़क के लिए जरूरी नहीं है ।”
सड़क किसी तरह साहस बटोर कर उठ कर खड़ी होती है और प्रशासन से पूछना चाहती है कि यहां लोगों के मकान भी हैं । सैकड़ों हजारों लोग रहते हैं । वह मुझ पर चलकर ही तो अपने घरों तक पहुंचेंगे ? अब तुमने जब मेरी नाक में ही रूई ठूँस रखी है और ई-रिक्शा तथा कार को आने से मना कर दिया है ,तब लोग अपने घरों से दूरदराज के क्षेत्रों के लिए कैसे जाएंगे तथा उनके घरों में लोग किस प्रकार आ पाएंगे ? चलती सड़क अच्छी होती है । रुकी सड़क बदबू पैदा करती है । इसे गौरव की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। सड़क चीखना चाहती है मगर उसकी आवाज घुट कर रह जाती है। बेचारी बेदम होकर गिर पड़ती है अब उसमें विरोध करने की भी शक्ति नहीं रही।
प्रशासन ने सड़क पर बोर्ड लगा दिया है :-” यहाँ कार तथा ई-रिक्शा का चलना मना है । मेला लगा है । ”
सड़क मेले के बोर्ड को देखती है । पढ़ती है और आंसू बहा कर कहती है , “मैं मेले की विरोधी नहीं हूं । मैं तो बस इतना चाहती हूं कि मेला जहां पर लगे ,वहां लोग कार और ई रिक्शा मेरे माध्यम से चलकर पहुंचें। ”
सड़क पर अब सिर्फ पैदल चलने की व्यवस्था रह गई है । सड़क दूर बने हुए घरों की तरफ मार्मिकता के साथ नजर उठा कर देखती है। लोग हाथ में मोबाइल लिए हुए हैं और अपने निकट संबंधियों से कह रहे हैं कि यहां हमारे घर तक आने वाली सड़क बंद है । चारों तरफ मेला क्षेत्र है । त्योहार के बाद पधारने का कष्ट करें।
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*लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
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