संत हृदय से मिले हो कभी
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संत हृदय से मिले हो कभी
कभी साक्षात्कार हुआ है तुम्हारा
वो या तो शुन्य होता है या विस्तार
या तो मौन होता है या संवाद
कोई पहले चरण में होता है
और कोई भौतिकता को लांघ भगवत शरण के शिखर पर
सब शास्त्रों के ज्ञाता नहीं हो जाते ईकपल में;
उससे पहले
संतों का सफर अब भी गुरुकुल की कठिन दिनचर्या से होकर गुजरता है
आसान नहीं है सब।
आसान है बस असाध्य को न मान मजाक बनाना
नवरात्रि आ रही;
छोड़ो शुरुआत यहीं से करते हैं,
नौ दिन लहसुन प्याज, तम्बाकू शिखा, बिड़ी सिगरेट और वो हाल ही में अमीर बना गांजा
छोड़ के देखो…न
रीढ़ में दीमक लगा रहे तुम्हारे हितैषी; तुम्हें समझा रहे भगवान वो नहीं तुम्हारा जिसकी धरती के वासी हो तुम
भगवान तो हम हैं; रावण नीति में विश्वास है हमारा
रावण के अनुयायियों
रीढ़ में हड्डी है…न
तो थुक दो ऐसा बोलने वालों के मुँह पर
वजह……. कभी समय मिले तो अपनी उंगलियों पर गरम तेल डाल के देखना
शायद समझ आए……जिंदा जलना क्या होता है
जिस जमीन पर संत न जिये; वह तो बस व्यभिचारी रावण की लंका ही हो सकती है
©दामिनी नारायण सिंह